नई पुस्तकें >> रथ इधर मोड़िये रथ इधर मोड़ियेबृजनाथ श्रीवास्तव
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हृदयस्पर्शी कवितायें
द्वितीय संस्करण के बारे में
आदरणीय साहित्य मनीषियों, पाठकों, श्रोताओं एवं समालोचकों,
दस वर्ष पूर्व अर्थात वर्ष 2013 में मेरा द्वितीय नवगीत संग्रह ‘रथ इधर मोड़िये‘ प्रकाशित हुआ था। आप सभी ने इसके गीतों को तहे दिल से पढ़ा, सराहा एवं अपार स्नेह दिया। यह संग्रह के गीतों का सौभाग्य था कि आप सभी की अभिरुचि इसमें बनी रही तथा इसकी माँग निरन्तर बनी रही। इसकी पाँच सौ प्रतियाँ वितरित करते-करते कब समाप्त हो गईं पता ही नहीं चला। साहित्य जगत में आज भी इसकी माँग का नैरन्तर्य बना हुआ है। अत: इसके द्वितीय संस्करण की आवश्यकता महसूस हुई और इसे पुन: प्रकाशित करने का निर्णय लेना पड़ा।
प्रतिष्ठित गीतकारों/ समीक्षकों / मित्रों कीर्तिशेष डॉ. देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ जी,कीर्तिशेष श्री कुमार रवीन्द्र जी, वरिष्ठ समालोचक कीर्तिशेष डॉ. वीरेन्द्र सिह जी (जयपुर), श्री अवध बिहारी श्रीवास्तव जी, श्री गुलाब सिंह जी, श्री मधुकर अष्ठाना जी, श्री नचिकेता जी, डॉ ओम प्रकाश सिह जी, समालोचक डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी, श्री शैलेन्द्र शर्मा जी, श्री शिव कुमार सिह कुँवर जी, श्री सत्येन्द्र तिवारी जी, डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव जी, डॉ. अनिल कुमर पाण्डेय जी जिनके आशीर्वचन इन गीत कविताओं के पाथेय बने मैं उनका आभारी हूँ। आदरणीय डॉ. देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ जी का, जिन्होंने संकलन की रचनाओं को समृद्ध एवं सारगर्भित भूमिका के शब्दामृत से अभिसिक्त किया आभारी हूँ। संकलन को आकर्षक कवर पृष्ठ से सुसज्जित करने के लिए कीर्तिशेष पुत्र डॉ. गौरव श्रीवास्तव (इसरो वैज्ञानिक) एवं पुत्रवधू श्रीमती सुचिता जैन (वैज्ञानिक जल संसाधन) का, आभारी हूँ साथ ही उन सभी पत्र-पत्रिकाओं,संकलनों के सम्पादकों का, जिन्होंने मेरे कवि होने के प्रामाणिक दस्तावेज समाज के सामने प्रस्तुत किये, हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। सहधर्मिणी सुमन लता सक्सेना, जिनके सार्थक सहयोग से ये रचनाएँ अपने पूर्णत्व को प्राप्त कर सकीं, का विशेष आभारी हूँ।
द्वितीय संस्करण के इस गुरुतर कार्य का दायित्व भार प्रतिष्ठित शायर भाई श्री राजेन्द्र तिवारी जी पर डालते हुए मैं उनका तथा भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशन के आदरणीय भाई श्री गोपाल शुक्ल जी के प्रति कृतज्ञ हूँ जिनके अथक निःस्पृह प्रयास से यह संकलन पुन: आकार पा सका।
मैं उन सभी का भी आभार व्यक्त करता हूँ जो प्रत्यक्ष / परोक्ष रूप से इस संकलन को आकार देने में सहभागी बने और अंतिम निर्णय सुधी पाठकों एवं समालोचकों के हिस्से में छोड़ता हूँ जो यह निर्णय करेंगे कि संकलन की रचनाएँ वर्तमान का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने में कितना सफल हो सकी हैं।
- बृजनाथ श्रीवास्तव
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